आश्रम में रासलीला-1

Ashram Me RasLila-1

हेलो.. ! रुचिका !” मेरे सम्पादक की आवाज सुनते ही मैं सम्भल गई। “हाँ बोलिए !” मैंने अपनी जुबान में मिठास घोलते हुए कहा। मेरे सम्पादक रजनीश से मेरा वैसे भी छत्तीस का आंकड़ा है। वो बुरी तरह चीखता है मुझपर। “तुम्हें किशनपुरा जाना है, अभी इसी वक़्त !” उसके आदेश करने वाले लहजे को सुन कर दिल में आया कि सामने हो तो दो चार गालियाँ जरूर सुनाती। क्यों?” उसे शायद मुझसे इस तरह के सवाल की ही उम्मीद थी। “तुम्हें किशनपुरा के गुरू अचलानन्द का सम्पूर्ण-साक्षात्कार लेना है !” “क्या?” मैं ख़ुशी से उछल पडी। काफ़ी दिनों से गुरूजी का साक्षात्कार लेना चाहती थी। बहुत सुन रखा था उनके बारे में। बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के आदमी थे। किशनपुरा जो कि हमारे यहाँ से कोई बीस-बाईस किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है। वहाँ काफी लम्बी-चौड़ी जगह में उनका आश्रम था। काफी भक्त भी थे उनके। बीच बीच में दबी जुबान में कभी कभी उनके रंगीले स्वभाव के बारे में भी अफवाह फ़ैल जाती थी।

“उनके बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र करनी है तुम्हें !” रजनीश ने आगे कहा,”कम से कम चार-पाँच सप्ताह की सामग्री हो जिसे हम हर रविवार विशेष बुलेटिन में जगह देंगे. इसके लिये तुम्हें कई दिन मन लगा कर काम करना होगा। यह तुम्हारी इच्छा है कि तुम वहीं रहो या प्रतिदिन वहाँ जाओ, लेकिन हमें सम्पूर्ण सूचनाएँ चाहिएँ, सुबह से शाम तक, गुरूजी के बारे में हर तरह की बातें, कुछ प्रवचन में भी ध्यान करना। सुन रही हो ना मेरी बातें?” “हाँ… हाँ सर ! मैं आज से ही काम पर लग जाती हूँ !” “आज से ही नहीं अभी से !” कह कर उसने फ़ोन रख दिया। जरूर बुड्ढा गाली निकाल रहा होगा ! लेकिन मैं तो काफ़ी दिनों से किसी बड़े प्रोजेक्ट के लिए तरस रही थी। मुझे ख़ुशी से चहकते देख मेरे पति जीवन ने मुझे बाँहों में भर कर चूम लिया। मैंने उन्हें सारी बात बताई, वो भी मेरी ख़ुशी में शरीक हो गए।

मैं अपने बारे में बताना तो भूल ही गई. मैं रुचिका, रुचिका लाल, २६ साल की एक सेक्सी महिला हूँ। मेरी शादी जीवन लाल से आज से चार साल पहले हुई थी। हम दोनो यहाँ लखनऊ स्टेशन के पास ही रहते हैं। मैं एक समाचारपत्र में वरिष्ठ सम्वाददाता के पद पर हूँ. हमारे समाचारपत्र की बहुत अच्छी प्रसार-संख्या है. मैं वैसे तो किसी विशेष केस को ही अपने हाथ में लेती हूँ. वरना आजकल सम्पादन का काम ही देख रही हूँ जो कि बड़ा ही बोरिंग काम है. घूमना-फिरना और नए-नए लोगों से मिलना मेरा शुरू से ही मनभावन कार्य रहा है। हम दोनों के अलावा हमारे साथ मेरी सास रहती हैं, मेरे एक बच्चा है जो अभी एक साल का ही हुआ है। कामकाजी महिला होने के बावजूद मैं अपने बच्चे को जब भी मैं घर पर होती हूँ तो बच्चे को स्तनपान ही कराती हूँ लेकिन इससे मैं बहुत उत्तेज़ित हो जाती हूँ और फ़िर तो आप समझ ही गए होंगे कि जीवन साहब का क्या हाल होता होगा !
मेरे स्तन ३८ आकार के हैं और दूध भरे होने के कारण एकदम तने रहते हैं।

मेरे पति जीवन शादी के बाद से ही मुझे अंग-प्रदर्शन के लिए जोर देते थे। उन्हें किसी को मेरे बदन को घूरना बहुत अच्छा लगता है। इसके लिए मुझे हमेशा कसे हुए, बदन से चिपके हुए कपडे पहनने के लिए कहते हैं और ब्लाऊज़ का गला और पीठ तो इतनी गहरे होते हैं कि आधे वक्ष बाहर दिखें !. कभी कभी तो उनके कहने पर अर्ध-पारदर्शी कपडे पहन कर या बिना ब्रा के ब्लाऊज़ पहन कर भी बाहर जाती हूँ। खैर अब उस बात पर लौटते हैं। मैंने एक काफ़ी लो-कट कसी हुई टी-शर्ट पहनी और एक टांगों से चिपकी हुई जींस। गरमी का मौसम था इसलिए नीचे मैंने ब्रा नहीं पहनी थी। मेरे चूचुक बाहर से साफ दिख रहे थे। “कैसी लग रही हूँ?” मैंने पूछा। “ह्म्म्म ! हमेशा की तरह सेक्सी !”

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“कैसी लग रही हूँ?” मैंने पूछा। “ह्म्म्म ! हमेशा की तरह सेक्सी !” “अनीष का ख्याल रखना ! हो सकता है लौटने में देर हो जाये, मैं कार ले जा रही हूँ।” मैं अपनी कार पर किशनपुरा के लिए निकल गई। गरमी का मौसम था, कुछ ही देर में गर्म हवाएँ चलने लगी। मैं दस बजे तक किशनपुरा पहुंच गई। गुरूजी का आश्रम बहुत ही विशाल था। अन्दर की सजावट देख कर मेरा मुँह तो खुला का खुला रह गया। मैं वहाँ गुरूजी से मिली। गुरूजी बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के आदमी थे। उनके चेहरे में एक चमक थी, घनी दाढ़ी में चेहरा और भरा-भरा लग रहा था। कोई ६’२” या ३” कद होगा, चौड़ा बालों से भरा सीना किसी भी महिला को पागल करने के लिए काफ़ी था। उसने नंगे बदन पर एक लाल तहमद बाँध रखी थी और एक लाल दुपट्टा कंधे पर रख रखा था। उन्होंने बिना कुछ बोले मुझे ऊपर से नीचे तक देखा। मेरे स्तनों को देखते हुये मुझे लगा कि उनकी आँखों में क्षण भर के लिए एक चमक सी आई फ़िर ओझल हो गई। मुझे हाथ से बैठने का इशारा किया। वो तब किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहे थे। मैंने उनको अपने आने का मकसद बताया। उन्होंने मुझे बैठने को इशारा किया।

मैंने अपना पहचान-पत्र उनके सामने कर दिया। उनके चहरे पर एक बहुत ही प्यारी सी मुस्कान सदा ही बनी रही थी. मेरे बारे में औपचारिक पूछताछ के बाद उन्होंने अपने एक शिष्य को बुलाया, “इनको मेरे बगल वाला कमरा दिखा दो। कुछ सामान हो तो वो भी पहुँचा देना, ये हमारी खास अतिथि हैं, इनका पूरा ध्यान रखा जाए। मोनिका जी को इनके साथ रहने को कह देना, वो हमारे बारे में इनकी सारी जिज्ञासा शांत कर देंगी।” धीरे-धीरे और मृदु स्वर में उन्होंने कहा, स्वर बहुत धीर और गम्भीर था। “गुरूजी अपके पाठ का समय हो गया है !” उस आदमी ने उनसे कहा। गुरूजी उठते हुये मेरे सिर पर हाथ फेरा तो लगा मानो एक चुम्बकीय शक्ति उनके हाथों से मेरे बदन में प्रवेश कर गई। “तुम आराम करो और चाहो तो आश्रम में घूम फ़िर कर देख भी सकती हो, मोनी तुम्हें सब जगह दिखा देगी।” कह कर वो चले गए। मोनी नाम की लड़की कुछ ही देर में आ गई। उसने लाल रंग का एक किमोनो जैसा वस्त्र पहन रखा था, जैसा पहाड़ी इलाके में लडकियाँ पहनती हैं, वो बहुत ही ख़ूबसूरत थी और बदन भी सेक्सी था। उसने मुझे एक कमरा दिखाया, कमरा काफ़ी खूबसूरती से सजा हुआ था, मानो कोई फाइव स्टार होटल का कमरा हो। तभी एक युवती कोई शरबत लेकर आई. उसका स्वाद थोड़ा अजीब था, मगर उसे पीने के बाद तन-बदन में एक स्फूर्ति सी छा गई। मोनी ने पूरा आश्रम घुमाया, बहुत ही शानदार बना हुआ था।

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उसने फ़िर सबसे मेरी मुलाक़ात कराई। वहाँ १२ आदमी और ५ महिलाएं रहती थी। महिलाएं सारी की सारी खूबसूरत और सेक्सी थी। सबने एक जैसा ही गाऊन पहन रखा था, जो क़मर पर डोरी से बंधा था। उन्होंने शायद अन्दर कुछ नहीं पहन रखा था क्योंकि चलने फिरने से उनकी बड़ी-बड़ी छातियाँ हिलती डुलती थी। आदमी सब क़मर पर एक लाल लुंगी बाँधे थे। दोपहर को खाना खाने के बाद गुरूजी कुछ देर विश्राम करने चले गए। शाम को उनका हॉल में प्रवचन था। मैं उनके संग रहने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रही थी, बहुत ही अच्छा बोलते थे, मैं तो मंत्रमुग्ध हो गई। शाम की आरती के बाद आठ बजे मुझे उन्होंने वार्तालाप के लिए बुलाया। मैं उनसे तरह तरह के सवाल पूछने लगी। वो बिना झिझक उनके जवाब दे रहे थे। उनके जवाब मैं वॉकमैन में रेकॉर्ड कर रही थी मैं उनके जवाब रेकॉर्ड करने के लिए उनकी तरफ झुक कर बैठी थी जिसके कारण मेरे टी-शर्ट के गले से बिना ब्रा के मेरे स्तन और चूचुक साफ दिख रहे थे।

गुरूजी की नजरें उनको सहला रही थी। अचानक मेरी नजरें उनके ऊपर पड़ी, उनकी आँखों का पीछा किया तो पता चला कि वो कहाँ घूम रही हैं, मैं शरमा गई लेकिन मैंने अपने दूध की बोतलें छिपाने की कोई कोशिश नहीं की। मैंने अपने बातों की दिशा थोड़ी बदली,”गुरूजी अपके बारे में तरह तरह की अफवाह भी सुनने को मिलती हैं?” मैंने पूछा लेकिन उनके चेहरे पर खिली मुस्कराहट में कोई बदलाव नज़र नहीं आया। “जब भी कोई लोगों की भलाई के लिए अपना सब कुछ लगा देता है तो कुछ आदमी उस से जलने लगते हैं, अच्छे मनुष्य का काम होता है की बगुले की तरह सिर्फ मोती चुन ले और कंकड़ को वहीँ पडे रहने दे!” उन्होंने बड़ी ही मधुर आवाज में मेरे प्रश्न का जवाब दिया। इसी तरह काफ़ी देर तक बातें होती रही। उन्होंने बातों-बातों में मुझे कई बार उनके आश्रम से जुड़ने के लिए कहा। रात के साढ़े नौ बजे मैंने उनसे अब घर जाने की इजाजत मांगी।
लेकिन तभी उनके एक शिष्य ने आकर बताया कि बाहर काफ़ी तेज़ बरसात शुरू हो गई है। मैं बाहर आई तो देखा बरसात काफ़ी तेज हो रही है। मैं अकेली और बाईस किलोमीटर का सुनसान रास्ता ! कुछ देर तक मैं बरसात के रुकने का इंतज़ार करती रही मगर बरसात रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। मैं अन्दर आ गई। अचलानन्द जी मुझे वापस आता देख खिल उठे। उन्होंने फौरन मोनी को बुलाया,” इनके भोजन और ठहरने की व्यवस्था कर दो !”

मोनी ने मुझे अपने साथ आने का इशारा किया। मैं उसके साथ अपने कमरे में आ गई। उसने एक किमोनो मुझे लाकर दिया। वो मुझे लेकर बाथरूम में आ गई। बाथरूम की एक दीवार पर लम्बा चौड़ा आइना लगा हुआ था। वो तो बाद में पता चला कि वो एक एक-तरफ़ा शीशा था जिसके दूसरी तरफ से बाथरूम के अन्दर का सारा दृश्य साफ दिखता था। “अपने कपडे उतार कर इसे पहन लो !”

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“अपने कपडे उतार कर इसे पहन लो !” मेरा चेहरा उसकी ओर था और आइना मेरे पीछे की ओर था. मैंने अपने टी-शर्ट को पकड़ कर अपने बदन से अलग कर दिया। मेरे गोरे बदन पर तने हुये ३८ आकार के स्तन देख कर उसकी आँखों में एक चमक आ गई,”तुम बहुत ख़ूबसूरत हो” उसने मेरे स्तन को हल्के से छूते हुये कहा। मैंने अपनी जींस को खोल कर अपने पैरों के नीचे सरका दी, उसे अपने बदन से अलग कर के मोनी को थमा दिया। फ़िर मैंने उसके हाथ में थामे किमोनो को लेने की कोशिश की तो उसने अपने हाथ को दूर कर लिया,”नहीं मैंने कहा था कि सारे वस्त्र खोल दीजिये, इसे पहनते समय शरीर पर और कोई अपवित्र वस्त्र नहीं होना चाहिए” उसने मेरे बदन पर मौजूद एक मात्र पैन्टी के इलास्टिक की तरफ हाथ बढाया,”अपनी पैन्टी को धीरे धीरे नीच करते हुये पीछे घूमो !” कह कर वो आइने वाली दीवार की तरफ चली गई।

मुझे तो समझ में नहीं आया कि वो ऐसा करने को क्यों कह रही है। लेकिन मुझे क्या पता था कि इस तरह से दीवार के उस तरफ मौजूद लोगों के लिए मैं अनावृत होकर गर्मागर्म अंग-प्रदर्शन कर रही थी। मैंने आइने की तरफ घूम कर नीचे झुकते हुये अपने पैरों से अपनी पैन्टी को निकाल दिया। “अब सीधी खड़ी हो जाओ !” मैं सीधी हो गई, बिल्कुल नग्न ! “वाह ! क्या शानदार बदन है आपका !” कह कर उसने मेरी योनि के ऊपर अपना हाथ फेरा।

मैं उसकी हरकतों से मुस्कुरा उठी। फ़िर मैंने उसके हाथों से वो किमोनो लेकर बदन पर पहन लिया। फ़िर हम बाहर आ गए। रात का भोजन करके मैंने जीवन को फ़ोन किया कि मुझे रात को यहाँ रुकना पड़ रहा है इसलिए बच्चे का ख्याल रखे। फ़िर मैं अपने कमरे में आ गई। कमरा बहुत शानदार था, नर्म बिस्तर पर सफ़ेद रेशमी चादर माहौल को और अनुपम बना रही थी। एक दरवाज़ा बगल में भी था जो दूसरी तरफ से बंद था और उसमें मेरे कमरे की तरफ से बंद करने के लिए कोई कुण्डी नहीं थी। मैं बिस्तर पर लेट गई। भोजन के बाद मुझे एक ग्लास भर कर कोई जूस दिया था, पता नहीं उसकी वजह से या वहाँ के माहौल से मेरा बदन गर्म होने लगा।

मैं उठी और उस किमोनो को अपने बदन से अलग कर पूरी तरह नग्न बिस्तर पर लेट गई और एक रेशमी चादर अपने बदन पर ओढ़ ली। कुछ देर में मेरा बदन कसमसाने लगा, मेरी अन्तर्वासना जागृत होने लगी, कान-पिपासा से वशीभूत हो मैंने अपने हाथ अपनी योनि पर रख दिया और उसे ऊपर से दबाने लगी। मन कर रहा था कि कोई आ कर मुझे मसल कर रख दे। मेरे स्तनाग्र विराट रूप धारण करने लगे थे, मैं अपनी उँगलियों के पौरों से उन्हें मसलने लगी। मैं अपनी दो उँगलियाँ अपनी योनि के अन्दर-बाहर करने लगी। मगर मेरी भूख थी कि बढ़ती ही जा रही थी।

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