एक किरायेदार की सेक्स कहानी-1

 Ek Kirayedar ki sex kahani-1

सर्द रात थी, कभी-कभी बाहर हाड़ को कंपा देने वाली बर्फीली हवाएँ पत्तों से टकरा कर रात की नीरवता को चीरती हुई डरावनी शोर उत्पन्न कर रही थी, यह शोर किसी बेबस की चीत्कार सी लग रही थी। यह भयावह शोर मेरे भीतर एक अनजानी सी सिहरन पैदा कर रहा था।

रात का एक बज रहा होगा, मैं कम्प्यूटर पर नेट-सर्फिंग कर रही थी, मुझे नींद भी नहीं आ रही थी। मेरा कमरा बहुत बड़ा है जिसे पापा ने बीच से लकड़ी के तख्तों से दो हिस्सों में विभाजित करवा दिया था एक हिस्सा मेरे पास था, दूसरी ओर एक किरायेदार रमाकांत पाण्डेय रहते हैं, वो हमारे पैतृक गाँव के रहने वाले हैं, वो दो महीने पहले ही हमारे घर पर किरायेदार के तौर पर आये थे। वो 48 वर्ष के हैं और यहाँ अकेले ही रहते हैं, उनका परिवार गाँव में ही है।

कम्प्यूटर को बंद करके जब मैं सोने जाने लगी तो तो मेरी नज़र अचानक लकड़ी वाली दीवार पर गई, तो मैं एकदम से डर गई, वहाँ पर एक काला, मोटा सा सांप जैसा कुछ नजर आया, मैंने डरते हुए नजदीक जाकर देखा तो पता चला कि वो लिंग था, किसी मर्द का पूर्ण उत्थित जननांग ! मैं समझ गई कि यह रमाकांत अंकल का ही हो सकता है।

मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि रमाकांत अंकल ऐसे होंगे। लकड़ी की दीवार में एक छेद है, जो लकड़ी की गाण्ठ निकल जाने से हो गया था, छेद को बंद करवाने की कभी जरूरत महसूस नहीं हुई थी।
मैं सहमते हुए उस लिंग के और नजदीक गई क्योंकि अब मेरा डर उत्सुकता में बदल गया था।

अंकल का लिंग अविश्वसनीय रूप से मोटा और काफी लम्बा था, लिंग एकदम गुस्सैल नाग की तरह फुफकारता हुआ, हिलता हुआ दिख रहा था। लिंग का सुपारा अत्यंत ही फ़ूला हुआ दिख रहा था, सूजा हुआ ऐसा लग रहा था। इतने विशाल, एकदम काले लिंग को देख कर मेरी चूत के दोनों ओंठ डर के मारे थरथर काँपने लगे, उसके घने बाल सिहरन के मारे एकदम झनझना कर खड़े हो गये, योनि से कुछ चिकना सा निकलने लगा।

फिर मैंने डरते हुए उस लिंग हल्के से स्पर्श किया, फिर डर थोड़ा कम हुआ तो मैंने उसको अपने हाथों से पकड़ लिया, वह विशाल लिंग मेरे हाथ के स्पर्श के बाद और भी मोटा और सख्त हो गया था, लिंग को पकड़ने में मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था।

फिर मैंने उत्सुकतावश लिंग के सुपारे के आवरण को हटाया तो मैं एकदम से डर गई क्योंकि वो एक अंडे जितना बड़ा था। इतना बड़ा सुपारा तो मैंने ब्लू-फिल्मों में भी नहीं देखा था। उसके छेद से कुछ चिकना सा तरल पदार्थ निकल रहा था, जिसे मैंने छू कर देखा तो मुझे वो चिपचिपा सा लगा।

यह सब करते हुए मेरे दिल की धड़कन एकदम से तेज हो गई, और गर्म सांसें चलने लगी थी, मेरी योनि ने पानी छोड़ दिया, पैन्टी एकदम गीली हो गई थी।

अंकल के लिंग का अत्यंत विशाल सुपारा मुझे दिखने में बहुत ही प्यारा लग रहा था तो मैंने हिम्मत करते हुए सुपारे पर अपने गुलाबी, नाजुक होठों से एक चुम्बन ले लिया। मेरे चुम्बन लेने से लिंग का आकार और भी दैत्याकार हो गया।

ऐसा करने से मैं बहुत ही उत्तेजित हो गई थी, मैंने अंकलजी के मोटे सुपारे को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया, चाटने से उनके लिंग से कुछ चिकना सा निकलने लगा था, जिसे मैं चाट गई फिर मैंने उसे थोड़ा सा मुँह में लेकर चूसना शुरू किया, अत्यंत मोटा होने के कारण मैं उसे मुँह में ले ही नहीं पा रही थी।
तभी एक झटके से विशाल सुपारा मेरे होंठों को चीरते हुए मेरे मुख में घुस गया, मुँह में घुसने के बाद मैं उसे बहुत प्यार से अपनी जीभ से सहलाने लगी। थोड़ी देर के बाद फिर एक हल्का सा धक्का आया और आधा लिंग मेरे मुँह में घुस गया, इतने मोटे लिंग को मुझे अपने मुँह में लेने में बहुत दिक्कत हो रही थी, लेकिन मैं उसे किसी तरह से चूस रही थी।

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लिंग चूसते समय अनायास ही मेरा हाथ मेरी पैंटी में घुस कर अत्यंत घने बालों वाली योनि की फाँकों को सहलाने लगा था। करीब 10 मिनट तक चूसने के बाद उस लिंग ने मेरे मुँह में एक गर्म सी मलाई छोड़ दी, वैसे तो यह मेरा प्रथम अनुभव था परन्तु वो कहते हैं ना कि ‘शादी नहीं हुई तो क्या, बारातें तो बहुत देखी हैं !’ मैंने बहुत सी ब्ल्यू फ़िल्में देख रखी थी, और अन्तर्वासना की कहानियाँ तो हर रात मेरी हमबिस्तर होती थी, गर्म-गर्म मलाई का स्वाद मुझे कुछ अजीब सा लगा, मितली होने को भी हुई पर उसे मैं यौनामृत समझ कर पी गई।
अगले दिन सुबह जब मैं रमाकांत अंकल से मिली तो उन्होंने मुझसे इस तरह से बात की कि जैसे बीती रात कुछ भी नहीं हुआ था। सुबह ही मेरे मम्मी-पापा मुजफ्फरपुर चले गए क्योंकि आज वहाँ मेरे दादाजी के हर्निया का ऑपरेशन होने वाला था, घर में केवल मैं और निशा भाभी थी, भैया अपने ऑफिस के काम से दिल्ली गए हुए थे।

दिन भर मैं रात होने का इंतज़ार करने लगी, मेरे ध्यान में रमाकांत अंकल का मोटा लिंग आते ही मेरी मासूम योनि में कम्पन शुरू हो जाती और योनिरस निकलने लगता, दिन में तीन बार मैं अपनी पैंटी बदल चुकी थी।
रात करीब 10 बजे जब मैं अपने कमरे में आई तो मेरी नजर सबसे पहले उसी छेद पर गई, वहाँ पर सामान्यतः दिखने वाली रोशनी नहीं थी, मुझे लगा कि उस पार कोई है छेद के पास !इसका मतलब यह था कि छेद से अंकल मुझे देख रहे थे। परन्तु मैंने अपनी सामान्य गतिविधी जारी रखी, मैंने अपने सोने वाले वस्त्र पहनने थे तो मैं एक एक करके अपने कपड़े उतारने लगी। मैं जानबूझ कर छेद के सामने चली गई और अंकलजी को अच्छे से अपने नंगे जिस्म को दिखाने लगी, इतने में अंकलजी ने उस छेद से अपने सख्त लिंग को बाहर निकाल दिया, जिसे देखकर मेरे शरीर में जैसे एकदम से करंट दौड़ गया हो।

मैं छेद के पास जाकर अंकल का लिंग पकड़ कर उसे बेतहाशा चूमने लगी फिर उसका सुपारा को खोल कर उसपर अपने होठों की एक गर्मा-गर्म छाप दी, उसे अपनी मुट्ठी में भींच कर आगे-पीछे करने लगी।
फिर मैं अंकल के लिंग को अपने जीभ से चाटने लगी। लिंग को चाटने से रह-रह कर मेरी चूत के दोनों कोमल ओंठ एकदम फड़कने लगे। मैं अंकल का लिंग अपने मुंह में लेकर पागलों की तरह चूसने लगी। दीवार के दूसरी ओर से भी अंकल की सिसकारियाँ स्पष्ट सुनाई दे रही थी।

अब मैं इससे आगे कुछ करना चाह रही थी, मैंने अपने बिस्तर को उस लकड़ी की दीवार से सटा दिया और मैं दीवार के सामने अपनी टांगों को फैला कअर इस तरह बैठ गई कि अब अंकल का लिंग और मेरी योनि एकदम आमने-सामने थी। मैंने अपनी योनि की दोनों होंठों को चीर के उसे अंकलजी के लिंग पर ऊपर-नीचे रगड़ने लगी तो मेरी योनि से योनिरस निकलने लगा।

अब मैंने अपनी 4 इंच लम्बी दरार वाली योनि को एकदम से चीर के अपनी चूत की छेद को अंकल के भीमकाय सुपारे पर एकदम से सटा कर उसे रगड़ने लगी, फिर मैंने थोड़ा ताकत लगा के उसे अपनी योनि में समाने का प्रयास किया परन्तु सुपारे का आकार बड़ा होने कारण अन्दर नहीं घुस पाया, मैंने 3-4 बार थोड़ा और ताकत लगा के प्रयास किया लेकिन हर प्रयास असफल ही गया।

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उस समय मुझे लग रहा था कि कैसे मैं अंकलजी का पूरा लिंग अपने चूत में पूरा समा लूँ। उत्तेजना से मेरी पूरी जिस्म एकदम गर्म हो चुका था। तभी अंकल ने छेद से अपना लिंग निकाल लिया और छेद के पास अपना मुँह लाकर बोले- बेटी पायल, कान यहाँ लगा कर मेरी बात सुनो !

जब मैं अपना कान वहाँ पर ले गई तो अंकल ने कहा- पायल, मेरा लिंग बीमारी के कारण अत्यंत मोटा हो गया है, यह अब ऐसे तुम्हारी चूत में ऐसे नहीं घुसेगा। तुम अपनी योनि में ढेर सी वेसलीन लगा कर घोड़ी बनकर छेद में अपनी योनि को सटा दो। इस तरह से तुम्हारी योनि में मेरा लिंग घुस जायेगा।

फिर मैंने अपनी चूत में ढेर सारी वेसलीन लगा ली और छेद के आगे चूतड़ लगा कर घोड़ी बन गई।
फिर अंकल ने कहा- जब मैं अपना लिंग अन्दर घुसाऊंगा तो तुम्हें शुरू में दर्द होगा पर तुम जरा भी चिल्लाना नहीं, अपनी दाँत पर दाँत चढ़ा के अपना जबड़ा एकदम से भींच लेना, थोड़ी देर ही दर्द होगा, बाद में आनन्द आना शुरू हो जायेगा।

इसके बाद मैं घोड़ी बनकर छेद के पास अपनी चूत को एकदम से सटा दिया। फिर मेरी अत्यंत कसी हुई के चूत के दोनों पंखुड़ी जैसे कोमल ओठों को फैलाता हुआ अंकल का बेरहम सुपारा जैसे ही मेरी चूत में घुसा, मेरे मुँह से अचानक उईईई ईईईई माँ की चीख निकल गई।

तभी मैंने अंकल को बोला- अंकलजी, मुझे बहुत ही दर्द हो रहा है, आप जल्दी से अपना लिंग बाहर निकाल लो।

यह सुनकर अंकल एकदम घबरा गए और उन्होंने अपना लिंग बाहर निकलने का प्रयास किया परन्तु उनका लिंग बाहर नहीं निकला। लिंग का सुपारा मेरी तंग योनि में बुरी तरह फँस चुका था और अंकलजी के बहुत प्रयास करने के बाद भी निकल नहीं पा रहा था। मेरे तो होश ही एकदम उड़ गए थे, मेरी चूत में दर्द भी बहुत हो रहा था।
अब इस आफत की घड़ी में किसी की मदद भी नहीं ले सकती थी, तभी मेरे दिमाग में एक आईडिया आया कि घर में तो मम्मी-पापा तो हैं नहीं, घर में तो केवल निशा भाभी है, भैया तो अपने ऑफिस के काम से दिल्ली गए हुए हैं।

सोचा कि अभी मुसीबत की घड़ी में भाभी से मदद ले लेती हूँ फिर भाभी से मैं और अंकलजी माफ़ी मांग लेंगे।
मेरा मोबाइल मेरे सामने ही था, मैंने भाभी को फ़ोन करके बोला कि भाभी अभी मैं एक बहुत बड़ी मुसीबत में फँस गई हूँ, आप जल्दी से मेरे रूम में चली आओ।

भाभी ने ज्यों ही मेरे कमरे में प्रवेश किया तो वहाँ का नजारा देख कर एकदम सन्न रह गई।
मैंने भाभी से कहा- भाभी,म आप चाहे बाद में मुझे कितना भी डांट लेना या पीट लेना लेकिन अभी मेरी मदद कर दो, आप अभी पीछे के कमरे में जाकर के रमाकांत अंकल से मेरी चूत में फँसा उनका लिंग निकालने का कोई उपाय पूछो।

भाभी जब अंकलजी के कमरे में गई तो अंकलजी ने गिड़गिड़ाते हुए भाभी से माफ़ी मंगाते हुए कहा- निशा बेटी, मुझे माफ़ कर दो।

तब भाभी ने गुस्से में कहा- माफ़ी आप बाद में माँगिएगा, पहले आप पायल की चूत में फंसा हुआ आपका वो निकालने का उपाय बताइये।

तो अंकल ने कहा- बहू, तुम पायल की कमर को पकड़ के थोड़ी ताकत लगाते हुए उसे मेरे लिंग की ओर धकेलना और जब मेरा पूरा लिंग उसकी योनि में घुस जायेगा तो तुम उसकी कमर को पकड़ के उसे आगे-पीछे करना, इससे थोड़ी देर में मेरा स्खलन हो जायेगा और मेरा लिंग छोटा होकर बाहर निकल जायेगा।

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भाभी मेरे कमरे में चली आई, पहले उसने अंकल का मोटा लिंग को पकड़ के उसे छुड़ाने का प्रयास किया तो मेरी योनि में और भी दर्द होने लगा तो भाभी ने ऐसा करना छोड़ दिया फिर उसने मेरी पतली कमर को पकड़ के उसे लिंग की ओर धकेलने का प्रयास किया।

तो घप्प से अंकलजी का पूरा लिंग मेरी योनि के अन्दर तक घुस गया, मैं दर्द से एकदम चिल्ला उठी तो भाभी ने कहा- थोड़ा बर्दाश्त करो पायल।

उधर से अंकलजी ने कहा- शाबाश बेटी निशा, इसी तरह से धीरे-धीरे प्रयास करते रहो। तुम पायल की कमर को पकड़ के उसे धीरे-धीरे आगे-पीछे करो।

फिर भाभी ने मेरी पतली कमर को पकड़ के उसे अंकल के रॉड के आगे-पीछे पिस्टन की तरह करने लगी मेरी अत्यंत कसी हुई चूत की मांसपेशियों ने अंकल के गधे जैसे लिंग को एकदम दबोच रखा था।

भाभी मेरी नाजुक कमर को पकड़ के उसे लयबद्ध तरीके से आगे-पीछे कर रही थी। मेरे मुँह से दर्द और आनंद की मिली-जुली कराह निकल रही थी। थोड़ी देर के बाद मेरा दर्द कम हो गया और मुझे आनन्द की अनुभूति होने लगी।

भाभी मेरी कमर को पकड़ कर उसे खूब जोर-जोर से आगे-पीछे कर कर रही थी, कमरे में फच-फच की भद्दी सी आवाज़ चारों तरफ फ़ैल रही थी और उधर से अंकल की आनन्द भरी कराहट भी सुनाई पर रही थी।
भाभी ने मुझसे पूछा- पायल, चुदवाने में अब तुम्हें कोई दर्द महसूस नहीं न हो रहा है?

तो मैंने कहा- भाभी अब बिल्कुल दर्द नहीं हो रहा है, अब अच्छा लग रहा है।

ये सब देखते हुए लग रहा था कि भाभी भी बहुत उत्तेजित हो गई थी।

अब मैं खुद अपने नितम्ब आगे-पीछे करने लगी तो भाभी ने मेरी कमर को छोड़ दिया। मुझे अपनी चूत चुदवाने में इतना ज्यादा आनंद आ रहा था, जिसे मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती।

जब मैं अपनी नितम्ब को आगे-पीछे कर रही थी तो भाभी अंकल के कमरे में चली गई और उनसे बोला- अंकलजी, 10 मिनट हो गये हैं और अब और कितनी देर में आपका फॉल होगा?

तो अंकल ने कहा- बेटी, पायल की चूत तो अत्यंत ही कसी है, स्खलन तो अब तक हो जाना चाहिए था, अगर तुम थोड़ी मेरी मदद करोगी तो जल्द ही फॉल हो जाएगा।

निशा ने कहा- कैसी मदद चाहिए, अंकलजी?

तो अंकल ने- बहू, अगर अभी तुम मेरी अंडकोष को अपनी हाथों से सहलाओगी तो मेरा माल जल्द ही गिर जाएगा।

निशा भाभी भी मेरी चुदाई देखकर उत्तेजित हो गई थी, फिर भाभी ने शरमाते हुए अंकल के अंडकोष अपने गोरे-गोरे, नाजुक हाथों से सहलाने लगी।

भाभी के अंडकोष सहलाने के कारण अंकल को अत्यधिक उत्तेजना मिलने लगी। अंकल के अंडकोष को सहलाते हुए भाभी ने कहा- अंकली, आपके अंडकोष तो मेरे पति से बहुत बड़े हैं।
तो अंकल ने कहा- बेटी, मेरा लिंग बहुत ही बड़ा है इसलिए मेरे अंडकोष भी बड़े हैं।

फिर अंकल ने बोला- अच्छा बताओ बेटी, मेरे और तुम्हारे पति के तुलना में किसके अंडकोष ज्यादा सुन्दर हैं?
भाभी- अंकलजी, आपके अंडकोष ज्यादा सुन्दर हैं, बहुत प्यारे हैं दिखने में।

यह सुनकर अंकल ने कहा- बेटी निशा, एक बात बताओ, हम लोग हर सुन्दर और प्यारे चीज़ को चूम लेते हैं ना?

निशा- हाँ अंकलजी।

अंकल- तो फिर तुम मेरे अंडकोष भी चूमो ना, तुमने अभी इसे सुन्दर और प्यारा कहा है।
यह सुनकर भाभी का गोरा चेहरा शर्म से लाल हो हो गया।

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