Naukar Malkin Sex Story : मेरा नाम रानी है। मैं 28 साल की हूँ और मुंबई में अपने पति, संजय, के साथ रहती हूँ। संजय एक बड़े बिजनेसमैन हैं, और हमारा घर एक आलीशान अपार्टमेंट है। शादी को चार साल हो गए, लेकिन संजय का सारा ध्यान अपने काम पर रहता है। रात को वो थके-हारे घर आते हैं, और मुझे वो सुख कभी नहीं मिला, जिसकी मैं हकदार थी। मेरी जवानी बेकार जा रही थी। मेरा जिस्म तरस रहा था—मेरी चूचियाँ सख्त थीं, मेरी चूत गीली रहती थी, और मेरी गांड की मटक किसी मर्द की नजरों से छुपती नहीं थी। लेकिन संजय को मेरी ये आग दिखाई ही नहीं देती थी।
हमारे घर में एक नौकर था, रमेश। वो 30 साल का था, गाँव से आया हुआ। लंबा, मजबूत जिस्म, और वो गहरी आँखें जो मुझे देखते ही कुछ कहती थीं। रमेश घर का सारा काम करता था—झाड़ू, बर्तन, कपड़े धोना। लेकिन मैंने कई बार उसकी नजरें अपने जिस्म पर महसूस की थीं। जब मैं टाइट नाइटी में होती, तो वो मेरी चूचियों को घूरता। मेरी गांड की मटक देखकर उसकी साँसें तेज हो जाती थीं। शुरू में मैं शरमाती थी, लेकिन धीरे-धीरे उसकी वो भूख मुझे अच्छी लगने लगी।
एक दिन की बात है। संजय सुबह ही ऑफिस चले गए थे। मैं नहाकर बाहर आई। मेरे गीले बाल मेरी कमर तक लटक रहे थे, और मैंने सिर्फ एक पतली नाइटी पहनी थी। रमेश हॉल में झाड़ू लगा रहा था। मैं सोफे पर बैठी, और मेरी नाइटी थोड़ी ऊपर सरक गई। मेरी गोरी टाँगें और चूत का हल्का सा उभार दिख रहा था। रमेश की नजरें वहाँ टिक गईं। मैंने उसे देखा और बोली, “रमेश, क्या देख रहा है?” वो हड़बड़ा गया और बोला, “मालकिन, कुछ नहीं।” मैंने हँसकर कहा, “झूठ मत बोल, तेरी आँखें सब बता रही हैं।” वो मेरे पास आया और धीरे से बोला, “मालकिन, आप बहुत खूबसूरत हैं। मालिक को समझ नहीं आता।” उसकी ये बात मेरे दिल में चुभ गई, और मेरे जिस्म में सिहरन दौड़ गई।
उस दिन शाम को बारिश शुरू हो गई। संजय ने फोन करके कहा, “रानी, मैं रात को लेट आऊँगा।” मैं उदास हो गई। रमेश किचन में बर्तन धो रहा था। मैं वहाँ गई। मेरी साड़ी गीली थी, और मेरी चूचियाँ उसमें चिपक गई थीं। “रमेश, चाय बना दे,” मैंने कहा। वो मेरी ओर मुड़ा, और उसकी नजरें मेरी चूचियों पर टिक गईं। “मालकिन, आप आज बहुत गर्म लग रही हैं,” उसने धीरे से कहा। मैंने उसकी आँखों में देखा और बोली, “तो क्या करेगा, रमेश?” वो मेरे करीब आया, और उसकी साँसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं। “मालकिन, जो आप कहें,” उसने फुसफुसाया। मेरे जिस्म में आग भड़क गई।
मैंने उसे अपने कमरे में बुलाया। वो मेरे पीछे आया। मैंने दरवाजा बंद किया और उसकी ओर मुड़ी। “रमेश, मेरा पति मुझे वो सुख नहीं देता जो एक औरत को चाहिए। तू दे सकता है?” मैंने सीधे कहा। वो चौंक गया, लेकिन उसकी आँखों में चमक आ गई। “मालकिन, मैं आपकी हर ख्वाहिश पूरी करूँगा,” उसने कहा और मुझे अपनी बाँहों में खींच लिया। उसके हाथ मेरी चूचियों पर गए। वो टाइट थीं, गर्म थीं, और उसने उन्हें जोर से दबाया। मैं सिसक उठी— “उफ्फ, रमेश, धीरे।” वो बोला, “मालकिन, आपकी चूचियाँ तो दूध से भरी हैं। इन्हें चूसना है मुझे।” उसने मेरी नाइटी का कंधा सरकाया और मेरी चूचियों को नंगी कर दिया। उसकी जीभ मेरे निप्पल पर घूमी, और मैं चिल्ला उठी— “आह्ह, रमेश, ये क्या कर रहा है?”
उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया। मेरी नाइटी फर्श पर गिर गई, और मैं नंगी थी। मेरी चूत गीली थी, और मेरी गांड हवा में लहरा रही थी। रमेश ने अपने कपड़े उतारे। उसका लंड बाहर आया—लंबा, मोटा, और सख्त। मैंने डरते हुए कहा, “रमेश, ये तो बहुत बड़ा है।” वो हँसा और बोला, “मालकिन, ये आपकी चूत के लिए ही है।” उसने मेरी टाँगें फैलाईं और मेरी चूत पर अपनी जीभ रख दी। उसकी गर्म जीभ मेरी चूत को चाट रही थी, और मैं पागल हो गई— “आह्ह, रमेश, मुझे मार डालेगा।” वो बोला, “मालकिन, आपकी चूत का स्वाद शहद जैसा है।” उसकी जीभ अंदर-बाहर हो रही थी, और मेरी सिसकियाँ तेज हो गईं— “उफ्फ, रमेश, चोद दे मुझे।”
उसने अपना लंड मेरी चूत पर रगड़ा। मैं टपक रही थी। उसने एक जोरदार धक्का मारा, और उसका लंड मेरी चूत में घुस गया। मैं चीख पड़ी— “आह्ह, रमेश, मेरी चूत फट गई।” वो हँसा और बोला, “मालकिन, अभी तो मजा शुरू हुआ है।” उसने मुझे चोदना शुरू किया। उसका लंड मेरी चूत को चीर रहा था, और मेरी चूचियाँ हर धक्के के साथ उछल रही थीं। मैं चिल्ला रही थी— “आह्ह, रमेश, और तेज। मेरी चूत को फाड़ दे।” वो पागलों की तरह मुझे चोद रहा था। उसकी साँसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं, और मेरे जिस्म में आग लग रही थी।
रात भर हमारी चुदाई चलती रही। कभी वो मुझे बिस्तर पर चोदता, कभी मुझे गोद में उठाकर मेरी गांड पर थप्पड़ मारता। उसकी उंगलियाँ मेरी चूत में थीं, और उसका लंड मेरे अंदर। एक बार मैं उसके ऊपर चढ़ी और उसकी छाती को चूमते हुए उसकी सवारी की। मेरी चूचियाँ उसके मुँह में थीं, और वो उन्हें चूस रहा था। मैं चिल्लाई— “रमेश, मेरी चूत को भर दे।” उसने मुझे पलटा और पीछे से मेरी चूत में लंड डाला। मेरी गांड पर उसके धक्के पड़ रहे थे, और मैं सिसक रही थी— “उफ्फ, रमेश, तू मेरा मर्द है।”
सुबह के 3 बजे तक वो मुझे चोदता रहा। मेरी चूत सूज गई थी, और मेरा जिस्म थक गया था। आखिरी बार उसने मुझे दीवार से सटाकर चोदा। उसका लंड मेरी चूत में गहराई तक गया, और मैं चीख पड़ी— “रमेश, बस कर, मेरी चूत जवाब दे गई।” उसने अपना माल मेरी चूत में छोड़ दिया, और मैं निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी। उसकी साँसें अभी भी गर्म थीं। मैंने उसकी ओर देखा और कहा, “रमेश, तूने मुझे वो सुख दिया जो संजय कभी नहीं दे सका।” वो हँसा और मेरी चूचियों को सहलाते हुए बोला, “मालकिन, आपकी चूत मेरे लिए बनी है।”
उस रात के बाद मेरे और रमेश के बीच एक अनकहा रिश्ता बन गया। संजय को कभी शक नहीं हुआ। वो अपने काम में डूबा रहा, और मैं रमेश की बाँहों में वो सुख पाती रही जो मेरा हक था। उसकी चुदाई ने मेरी जवानी को जगा दिया। मेरी चूचियाँ, मेरी गांड, मेरी चूत—हर चीज उसकी भूख का शिकार बन गई। वो मेरा नौकर था, लेकिन मेरे जिस्म का मालिक बन गया। उसने मुझे वो आग दी, जो मेरे पति ने कभी नहीं जलाई। और मैं उस आग में जलने को तैयार थी।