मेरी गरमा गर्म चुदाई – 1

मेरा नाम जैनब है. मै 25 साल की खूबसूरत लड़की हूँ. बड़ी – बड़ी चूचियाँ और पतली कमर किसी को भी पागल कर देने के लिए काफ़ी हैं. मैं ने एमएमबीएस किया है. मेरी पोस्टिंग असम के एक छोटे से कस्बे के हॉस्पिटल मे हुई है. मैं पिछले साल बाहर से यहाँ के ओर्थोपेदिक वॉर्ड में काम कर रही हूँ. सुरू से ही मुझपे मरने वालों की कोई कमी नहीं रही है. कॉलेज के दिनों मे भी मेरे पिछे काफ़ी लड़के पड़े थे. यहाँ हॉस्पिटल के कई डॉक्टर भी मुझपे मरते हैं. मगर मेरी पसंद कुछ अलग किस्म की है.

मैं उन परिंदों पर अपना रस न्योछावर करने मे विस्वास नहीं करती जिनका काम ही फूलों का रस पी कर उड़ जाना होता है.. मेरी पसंद का आजतक कोई भी लड़का नहीं मिला. पता नहीं क्यों मुझे कोई भी पसंद ही नहीं आता. मेरे घर वाले भी मुझसे परेशांन  थे. कई लड़कों की तस्वीरें भी भेज चुके थे. मगर मैने ना कर दिया था. एक बार एक डॉक्टर ने अंधेरी जगह पर मुझे पाकर कर ज़बरदस्ती करने लगा मेरी छातियों को कस कर मसल्ने लगा. मैं उसे धक्का मार कर उसकी गिरफ़्त से निकल गयी उसके बाद तो उसकी वो ठुकाई की की मेरी तरफ देखना भी छोड़ दिया. मगर इतनी मगरूर लड़की आख़िर किसिके प्रेम मे पड़ गयी. और उसपर अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया. हुआ यूँ की एक दिन मैं राउंड पर निकली थी. शाम के 6 ओ’क्लॉक हो रहे थे मेरे साथ एक नर्स भी थी.

एक-एक पेशेंट के पास जा कर हम चेकप कर रहे थे. एक बड़ा हाल था कोने की तरफ हल्का अंधेरा था चेक करते करते मैं जब कोने की तरफ बढ़ी तो अचानक किसी काम से नर्स वापस लौट गई. मैं अकेली ही थी आखरी पेशेंट था. उसके पैर में डिसलोकेशन था. मैं उसके पास पहुँच कर मुआयना करने लगी. चार्ट देखते हुए मैने उसकी तरफ देखा. वो 30-32 साल का तंदुरुस्त नौजवान था. वो बिस्तर पर पीठ के बल लेटा हुआ था. चादर को सीने तक ओढ़ रखा था. उसकी रिपोर्ट देखते देखते मेरी नज़र उसके कमर पर पड़ी. उसकी कमर के पास चादर टेंट की तरह उठा हुआ था. और उसके हाथ अपने लिंग पर चल रहे थे. मैं कुछ पल तक एकटक उसके लिंग के इंप्रेशन को देखती रही. वो मेरी ओर देखता हुआ अपने लिंग पर हाथ चला रहा था. मैं एक दम घबरा गई.और भागती हुई कमरे से निकल गयी. मेरा बदन पसीने से भीग गया था. मैं वहीं पास के क्वॉर्टर्स मे रहती थी. सीधे घर जाकर ठंडे पानी से नहाई.

पता नही क्यों मन मे एक गुदगुदी सी होने लगी थी. बार बार मन वहीं पर खींच कर ले जाता. किसी तरह मैने अपने जज्बातों पर अंकुश लगाया. लेकिन जैसे जैसे रात बढ़ती गयी मेरा अपने उपर से कंट्रोल हटता गया. आख़िर मैं तड़प कर वापस हॉस्पिटल की ओर बढ़ चली. उस समय रात के 10.30 हो रहे थे चहल पहल काफ़ी कम हो गे था मैं स्टाफ की नज़रों से बचती हुई ओर्थोपेदिक वॉर्ड मे घुसी. ज़्यादातर पेशेंट सो गये थे. मैं इधर उधर देखती हुई आखरी बेड पर पहुँची और मेडिकल कार्ड देखने लगी. नाम लिखा था अमर. मैने उसकी तरफ देखा. वो वापस उसी कंडीशन मे था. लिंग खड़ा था और वो उसपर अपना हाथ चला रहा था. मैं धीरे धीरे सरक्ति हुई उसके पास पहुँची. अचानक चादर के नीचे से उसका एक हाथ निकला और मेरी कलाई को सख्ती से पकड़ लिया.

मैने हाथ छुड़ाने की कोशीश की मगर उसका हाथ तो लोहे की तरह मेरी कलाई को जकड़ा हुआ था. मैने आस पास नज़र डाली सब या तो सो रहे थे या सोने की कोशिश कर रहे थे. किसी को भी खबर नहीं थी की कमरे के एक कोने मे क्या ज़ोर मशक्कत हो रही थी. उसने मेरे हाथ को चादर के अंदर खींच लिया. मेरा हाथ उसके तने हुए लिंग से टकराया. पूरे शरीर मे एक सिहरन सी दौर गई. उसने ज़बरदस्ती मेरे हाथ को अपने लिंग पर रख दिया. मैने हिचकते हुए उसके लॅंड को अपनी मुट्ठी मे ले लिया. अब वो मेरे हाथ को उपर नीचे चलाने लगा. मुझे लग रहा था मानो मैने अपनी मुट्ठी मे कोई गरम लोहा पकड़ रखा हो. उसका लिंग काफ़ी मोटा था.

लंबाई मे कम से कम 10″ होगा. मै उसके लिंग पर हाथ चलाने लगी. उसने धीरे धीरे मेरे हाथ को छोड़ दिया. मगर मैं उसी तरह उसके लिंग को मुट्ठी मे सख्ती से पकड़ कर उपर नीचे हाथ चला रही थी. कुछ देर बाद उसका शरीर तन गया और मेरे हाथों पर ढेर सारा चिपचिपा वीर्य उधेल दिया. मैने उसका लंड छोड़ दिया. चादर से अपना हाथ बाहर निकाला. पूरा हाथ गाढ़े सफेद रंग के वीर्य से सना हुआ था. उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चादर से पोंच्छ दिया. मैं हाथ च्छुडा कर भाग गयी. घर पहुँच कर ही सांस ली. मेरे जांघों के बीच पॅंटी भीग गयी थी. मैने अपने हाथ को नाक के पास ले जा कर सूँघा. उसकी गंध अभी तक हाथों मे बसी हुई थी. मैने एक उंगली अपने जीभ से चाट कर देखा. उसके वीर्य का टेस्ट अच्छा लगा. फिर तो सारी उंगलियाँ ही चाट गयी. रात भर मै करवटें बदलती रही. जब भी झपकी आई उसका चेहरा सामने आ जाता था. सपनो में वो मेरे तन को मसलता रहा. रात भर बिना कुछ किए ही मैं कई बार गीली हो गयी.

पता नहीं उसमे ऐसा क्या था जो मेरा मन बेकाबू हो गया. जिसे जीतने के लिए अच्छे लोग अपना सब कुछ दावं पर लगाने को तैयार थे वो खुद आज पागल हो गयी थी. जैसे तैसे सुबह हुई. मेरी आँखें नींद से और खुमारी से भारी हो रही थी. मै तैयार हो कर हॉस्पिटल गयी. राउंड पर निकली तो मैं उसके बेड तक नहीं जा पाई. मैने स्टाफ को बुला कर उसके बारे मे पूछा तो पता लगा की वो ग़रीब इंसान है. और शायद उसके घर मे कोई नहीं है क्यों की उससे मिलने कभी कोई नहीं आता. मैने उसको डेलक्स वॉर्ड मे शिफ्ट करने के ऑर्डर दिए. वॉर्ड का खर्चा अपनी जेब से भर दिया. सब के सामने उसके पास जाने मे मुझे हिचक हो रही थी. मैं अपनी तबीयत खराब होने का बहाना कर के घर चली गयी. शाम को हॉस्पिटल जा कर पता लगा की उसे डेलक्स वॉर्ड मे शिफ्ट कर दिया है. मैं लोगों की नज़र बचा कर शाम आठ बजे के आस पास उसके वॉर्ड मे पहुँची. वहाँ मौजूद नर्स को मैने बाहर भेज दिया, ” तुम खाना खा कर आओ तब तक मैं यहीं हूँ.”

वो खुशी खुशी चली गयी. मुझे देख कर अमर मुस्कुरा दिया. मैं भी मुस्कुराते हुए उसके पास पहुँची. “कैसे हो” मैने पूछा. “तुम्हें देख लिया बस तबीयत अच्छी हो गयी.” मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया. उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा मैं जान बूझ कर उसके सीने से लग गयी. उसने मेरे होंठों को अपने होंठों से छुलिया. मेरा पूरा बदन थर थारा रहा था. मैने भी अपने होंठ उसके होंठ से सटा दिए और उसके होंठों को अपने होंठों मे दबा कर चूसने लगी. उसके हाथ मेरी चुचियों पर आगए. ऐसा लगा जैसे इन्हीं हाथों का मुझे अब तक इंतेज़ार था. मैने उसके हाथों पर अपने हाथ रख कर अपनी चूचियों को दबा दिया. वो मेरी छातियों को दबाने लगा. मेरे हाथ चादर के अंदर उसके पॅंट के जीप से उलझे हुए थे. मैने जीप खोल कर हाथ को अंदर डाल दिया |

आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | उसका लिंग मेरे हाथ की छूअन से फुंफ़कार उठा. मैं उसे बाहर निकाल कर सहलाने लगी फिर हाथों से सहला सहला कर उसका निकाल दिया. मेरे हाथ फिर गीले हो गये. वो मेरी छातियों से खेल रहा था. मैं हाथ बाहर निकाल कर उसके सामने ही अपनी जीभ से चाटने लगी. हाथ मे लगे उसके सारे वीर्य को अपनी जीभ से चाट कर सॉफ कर दिया. आधा घंटा हो चुका था. मैने जल्दी से अपने कपड़े सही किए. नर्स के आते ही मैं वहाँ से घर भाग आई. अगले दिन नर्स को खाने पर भेज कर मैने कुण्डी बंद कर ली. जैसे ही मैं अमर के पास आई उसने मेरे चेहरे को चूम चूम कर लाल कर दिया. मैं उसका लिंग निकल चुकी थी. इस बार उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपने लिंग पर झुका दिया. मैं ने शरारत से होंठ भींच लिए. वो लिंग को मेरी होंठों पर रगड़ने लगा. होंठ उसके वीर्य से गीले हो गये. मैने अपने होंठ खोल कर उसका लिंग अपने मुँह मे ले लिया.

पहले धीरे धीरे और बाद मे ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. काफ़ी देर तक मुख मैथुन कर के उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर दबा दिया. उसका लंड मेरे मुँह से होता हुआ मेरे गले के अंदर प्रवेश कर गया. उसका लिंग फूलने लगा था. मैं साँस लेने के लिए छ्टपटा रही थी. तभी ऐसा लगा जैसे उसके लिंग से गरम गरम लावा निकल कर मेरे गले से होता हुआ मेरे पेट मे प्रवेश कर रहा है. मैने सिर को थोडा बाहर की ओर खींचा. पूरा मूह उसके वीर्य से भर गया था. होंठों के कोनो से वीर्य बाहर चूह रहा था. मैने प्यार से उसकी ओर देखते हुए सारा वीर्य अंदर गटक लिया. काफ़ी टाइम हो चूका था. मैने दौड़ कर बाथरूम मे जाकर अपना मुँह धोया. बॉल और कपड़े सही कर के लौटी. “मुझे तो लगता है तुम मार ही दोगे” कहकर मैने उस से लिपट कर उसके होंठों को चूम लिया.

थोड़ी देर मे नर्स आ गई थी. इसी तरह रोज जब भी मौका मिलता मैं लोगों की नज़रों से बचा कर अपने महबूब से मिलती रही. हम एक दूसरे को चूमते.,सहलाते थे. वो मेरी चून्चियो को मसलता था, मेरी निपल्स से खेलता था. मैं रोज मुख मैथुन से उसका वीर्य निकाल देती थी. उसका वीर्य मुझे बहुत अच्छा लगता था. उस से ज़्यादा हम वहाँ कुछ कर नहीं पाते थे. पकड़े जाने और बदनामी का डर था. हफ्ते भर बाद एक दिन मैं वहाँ पहुँची तो कमरा खाली पाया. पूछने पर पता लगा की उसको डिसचार्ज कर दिया गया है. मैं कमरे मे उसके हिस्टरी शीट मे सब जगह उसका पता जानने की कोशिश की मगर कुछ पता नहीं लगा. मेरी हालत पागलों जैसी हो गयी थी जिससे मन लगाया वो ही मेरी बेवकूफी के कारण मुझसे दूर हो गया था. मैने उसे हर जगह ढूँढा. मगर वो तो ऐसे गायब हुआ जैसे सुबह ढूँढ गायब हो जाती है. मैने जिंदगी मे पहली बार किसी लड़के के लिए रोया…

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