मेरी सहेली रोशनी जो मेरे साथ क्वॉर्टर मैं रहती थी, उसने भी काफ़ी खोदने की कोशिश किया मगर मैने किसी को भी कुछ नहीं बताया. मैने जिंदगी मे पहली बार किसी से प्यार किया था. वो ग़रीब था लेकिन उसमे कुछ बात थी जो उसे सबसे अलग करती थी. कुछ हो ना हो मैं तो उस से प्यार करने लगी थी. घरवाले परेशान कर रहे थे शादी के लिए. मेरे पेरेंट्स आज़ाद ख़यालों के थे इसलिए उन्होंने कह दिया था की मैं जिसे चाहे पसंद करके शादी कर लूँ. कभी कभी मैं शोचती की क्या वो भी मुझे चाहता होगा?
अगर हां तो फिर वो कभी मुझसे मिला क्यों नहीं. धीरे धीरे सिक्स मोन्थ्स गुजर गये उस मुलाकात को. फिर अचानक ही वो मिला तो मुझे दिया तले अंधेरा वाली बात याद आई. एक दिन मैं हॉस्पिटल के लिए निकली तो अचानक मुझे एक जाना पहचाना चेहरा हॉस्पिटल के सामने के बगीचे मे काम करता हुआ दिखा. ” सुनो माली.” उसके घूमते ही मैं धक से रह गयी, “तुम?” सामने अमर खड़ा था. मेरा प्यार, मेरा चैन. मैं एकटक उसे देख रही थी. “मैडम” अमर ने मुझे सोते से जगाया.” मैं यहाँ माली का काम करता हूँ. आप अपने आप को सम्हलिए नहीं तो कोई भी आदमी इसका ग़लत मतलब निकाल सकता है. ” मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ. “तुम मुझे आज शाम ६ बजे मेरे घर पर मिलना. बहुत ज़रूरी काम है.. आओगे ना? तुम्हे मेरी कसम.” कहकर मैं अपने आप को सम्हालती हुई तेज़ी से हॉस्पिटल मे चली गयी. मुझे मालूम था की अगर मैने मुड़ कर देख लिया तो मैं अपनी रुलाई नही रोक सकूँगी.
हॉस्पिटल मे मन नहीं लगा तो तबीयत खराब का बहाना बना कर मैं भाग निकली. आज किसी काम मे मन नही लग रहा था. शाम को अमर आने वाला था मुझसे मिलने. उसकी तैयारी भी करनी थी. वापसी मे मुझे अमर नहीं दिखा. मैं बाज़ार जा कर कुछ समान खरीद लाई. समान मे एक झीना रेशमी गाउन. खाने पीने का समान और एक बोतल बियर था. एक लड़की के लिए बियर खरीदना कितना मुश्किल काम है आज मुझे पता लगा था | आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | बाड़ी मुश्किल से किसी को पैसे देकर मैने एक बॉटल बियर माँगाया. आज मैं उसकी पूरी तरह से स्वागत करना चाहती थी. शाम चार बाजे से ही मैं अपने महबूब के लिए तैयार होकर बैठ गयी. हाल्का मेकप करके पर्फ्यूम लगाया. फिर ट्रॅन्स्परेंट ब्रा और पॅंटी के उपर नया रेशमी गाउन पहन लिया.
गुलाबी झीने गाउन को पहनना और नही पहनना बराबर था. बाहर से एक एक रॉयन दिख रहा था. बिस्तर पर साफ़ेद रेशमी चदडार बिछा दिया. रूम स्प्रे चारों ओर स्प्रे कार दिया. कुछ रजनीगंधा के स्टिक्स एक फ्लवर वर्स मे बेड के सिरहाने पर राख दिया. ६ बजे तक तो मैं बेताब हो उठी. बार बार घड़ी को देखती हुई चहल कदमी कर रही थी. 6.10 पर डोर बेल बजा. मैं दौर कर दरवाजे पर गयी. की होल से देख कर ही दरवाजा खोलना चाहती थी. क्योंकि कोई और हुआ तो मुझे इस रूप मे देखकर पता नहीं क्या सोचे. उसे देख कर मैने दरवाजा खोलकर उसे अंदर खींच लिया. दरवाज़ा बंद करके मैं उससे बुरी तरह से लिपट गयी. किस करके पूरा मुँह भर दिया. ” कहाँ चले गये थे? मेरी एक बार भी याद नहीं आई?” ” मैं यहीं था मगर मैं जान बूझ कर ही आपसे मिलना नही चाहता था.
कहाँ आप और कहाँ मैं. चाँद और सियार की जोड़ी अच्छी नहीं लगती” मैने उसके मुँह पर हाथ रख दिया. ” खबरदार जो मुझ से दूर जाने का भी सोचा. आगर जाना ही था तो आए क्यूँ? मेरी जिंदगी मे हुलचल पैदा करके भागने की सोच रहे थे.” मैने कहा, ” और मुझे ये आप आप करना छोड़ो. तुम्हारे मुँह से तुम और तू अच्छा लगेगा.” * लेकिन मेरी बात तो सुनिए………” ” बैठ जाओ” कहकर मैने उसे धक्का देकर सोफे पर बिठा दिया. मैने मन ही मन डिसाइड कर लिया था की इतना सब होने के बाद अब मैं अमर से कोई शरम नहीं करूँगी और निर्लज्ज होकर अपनी बात मनवा लूँगी. मैं उठी और फ्रिड्ज से बियर की बॉटल निकाल कर उसका कॉर्क खोला. एक काँच के ग्लास मे डाल कर उसके पास आई. ग्लास मे उफनता हुआ झाग मेरे जज्बातों का उदाहरण पेश कर रहा था.
मैं उस से सॅट कर बैठ गयी और ग्लास को उसके होंठों से लगा दिया. उसने मेरी ओर देखते हुए मेरी हाथों से एक घूँट पिया. ग्लास को उसके हाथों मे पकड़ा कर मैं खड़ी होगयी. ” तुम्हे मेरे यह बहुत अच्छे लगते थे ना? ” मैने अपने ब्रेस्ट्स की तरफ इशारा किया. उसके होंठों के बिल्कुल पास आकर पूछा. ” खोल कर नहीं देखना चाहोगे?” इससे पहले की वो कुछ कहे मैने खड़े होकर एक झटके मे अपने गाउन को शरीर से अलग कर दिया. वो एकटक मेरी छातियों की ओर देख रहा था. मैं उसके पास आकर दोनो पैरों को फैला कर उसकी गोद मे बैठ गई. उसके सिर को पकड़ कर आपनी एक छाती पर दबा दिया. “ब्रा खोल्दो” मैने उसके कानो मे फुसफुसते हुए कहा. मगर उसे कोई हरकत करता नहीं देख कर मैने खुद ही ब्रा को शरीर से अलग कर दिया.
आज मैं इतनी उत्तेजित थी की ज़रूरत पड़ने से अमर को रेप भी करने को तैयार थी. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है | ” देखो ये कितने बेताब हैं तुम्हारे होंठों के.” कहकर मैने उसके होंठों से अपने निपल सटा दिए. पहले वो थोड़ा झिझका फिर धीरे से उसके होंठ खुले और मेरा एक निपल मुँह मे प्रवेश कर गया. वो अपने जीभ से निपल के टिप को गुदगुदाने लगा. ” आ हाआँ प्लीज़. ” मैं उसके बालों मे हाथ फिराते हुए बुदबुदाने लगी. उसके दूसरे हाथ को आपने दूसरे ब्रेस्ट पर रख कर दबाने लगी. कुछ देर बाद उसने दूसरे निपल को चूसना शुरू कर दिया उसके हाथ मेरे बदन पर घूम रहे थे. स्पर्श इतना हल्का था मानो शारीर पर कोई रुई फिरा राहा हो. कुछ देर बाद उसने मुँह उठा ते हुए कहा, ” मैडम अब भी सम्हल जाइए अब भी वक्त है.
हम मे अओर आपमे ज़मीन आसमान का फिर्क़ है.” मैं एक झटके से उठी. अपने शरीर से आखरी वस्त्रा भी नोच डाला. “देखो इस शरीर की एक झलक पाने के लिए कई लोग बेचैन रहते हैं और आज मैं खुद तुम्हारे सामने बेशर्म होकार नंगी खड़ी हूँ और तुम मुझ से दूर भाग रहे हो. मैने उसके हाथ पकड़ कर उठा दिया और लगभग खींचते हुए बेडरूम मे ले गई. उसे बेड के पास खड़ा कर के मैं उसके कपड़ों पर टूट पड़ी. कुछ ही देर मे वो भी मेरी ही हालात मे आगाया. मैं उसे बिस्तर पर पटक कर उसपर चढ़ बैठी. उसके शरीर के एक एक अंग को चूमने चाटने लगी. उसके निपल्स को दाँतों से हल्के से काट दिया.
उसके होंठों से अपने होंठ रगड़ ते हुए अपना जीभ उसके मुँह मे दे दिया. वो भी मेरी जीभ को चूसने लगा. मेरे हाथ उसके लिंग पर फिर रहे थे. मैने अब अपना ध्यान उसके लिंग पर कर दिया. पहले उसके लिंग को चूमा फिर उसे मुँह मे ले कर चूसने लगी. लिंग का साइज़ बढ़ कर लंबा और मोटा हो गया. उसका साइज़ देख कर एक बार तो मैं सिहर गयी थी की ये दानव तो मेरी चूत को फाड़ कर रख देगा. “बाहुत ही शैतान है ये. इसने मुझे ऐसा रोग लगाया की अब यह मेरा नशा बन गया है.” काफ़ी देर तक हम दोनो एक दूसरे के बदन से खेलते रहे. फिर मैं उसकी तरफ देख कर बोली, ” आज मैं अपना कौमार्य तुम्हें भेंट कर रही हूँ. इससे महनगी कोई चीज़ मेरे पास नहीं है. प्लीज़ मुझे लड़की से आज औरत बना दो…