मगर वो मेरे नंगे बदन को कस कर बाहों मे भर रखे थे.
“मैं हूँ.” मुझे पता चल गया कि आने वाला जेठ जी नहीं उनके साले अशोक जी हैं. “आ, आप?
आप यहाँ क्या कर रहें हैं?” “वही कर रहा हूँ जो अभी तुम अमर से करवा कर लौटी हो.”
उनकी बातें सुनते ही मेरे होश उड़ गये. जब तक मैं सम्हल्ती तब तक तो उनका लिंग मेरी योनि के द्वार पर ठोकर मार रहा था.
एक झटके से पूरा लिंग अंदर कर दिया.
मैं काफ़ी थॅकी हुई थी.
मगर मना भी नहीं कर सकती थी.
वरना उन्हों ने सबको बता देने की धमकी देदी थी.
बगल के कमरे मे जेठ जी सो रहे थे और इधर मेरी ठुकाई चल रही थी.
तरह तरह के पोज़िशन मे मुझे ठोक रहे थे.
मेरी चूचियो पर चारों तरफ दाँत के निशान नज़र आ रहे थे.
निपल्स सूज कर अंगूर जैसे हो गये थे |
सारी रात मुझे जगाए रखा.
मैं उनके उपर आ कर उनके लिंग पर उठक – बैठक लगाती रही. सुबह तक मेरी हालत खराब हो गयी थी.
फिर भी उठकर दीदी एवं बच्चे के लिए समान तैयार कर जेठ जी को दिया.
तबीयत खराब होने का बहाना कर के मैं घर पे रुक गयी.
कुछ देर आराम करना चाहती थी. मगर किस्मत मे आराम ना हो तो क्या करें.
अशोक जी भी तबीयत खराब होने का बहाना कर के रुक गये थे.
जेठ जी दोपहर तक वापस आए. इस दौरान असोक जी जी ने खूब मज़ा लिया.
अब तो मैं भी उनके साथ का लुत्फ़ उठाने लगी थी. उन्हों ने अपने घर लौटने का प्रोग्राम भी पोस्ट्पोंड कर दिया था.
दोपहर को जेठ जी को भी हमारी चुदाई का पता चल गया था.
फिर तो दोनो एक साथ ही मुझ पर चढ़ाई करने लगे थे.
एक पीछे से डालता तो दूसरा मेरे मुँह मे डाल देता.
दोनो ने मुझे सॅंडविच की तरह भी इस्तेमाल किया.
मैने कभी अपने पीछे वाले द्वार का इस काम के लिए इस्तेमाल नहीं किया था.
पहली बार तो मेरी आँखें ही बाहर आ गयी थी. इतना दर्द हुआ कि बता ही नहीं सकती मगर फिर धीरे धीरे उसकी आदि हो गयी.
मेरी तो हालत दोनो मिलकर ऐसी कर देते थे कि ठीक ढंग से चला भी नही जाता था.
योनि सूज कर लाल रहती थी. चूचियों पर काले काले निशान पड़ गये थे.
मैं तो जब तक दीदी घर नहीं आगेई तबतक दोबारा उनसे मिलने हॉस्पिटल नहीं गयी.
नहीं तो मेरी हालत देख कर उनको मेरे व्यस्त कार्यक्रम का पता चल जाता.
मुझे भी दोदो रंगीले मर्दों का साथ पाकर खूब मज़ा आ रहा था.
आसोक जी दीदी के आने के बाद ही खिसक लिए.
दीदी के घर आने के बाद ही मुझे जाकर आराम मिला.
हम दोनो के मिलन मे भी बाधा पड़ गयी.
वैसे दीदी को मेरी चाल और हालत देख कर मेरे रंगीले कार्यक्रम का पता चल गया था.
छ्हप्पन व्यंजन के बाद ही एक दम से उपवास मुझे रास नहीं आरहा था.
दो दिन मे ही मैं चटपट उठी. रात मे दीदी के सो जाने के बाद अमर जी को बुला लिया.
हम दोनो को संभोग करते हुए कुछ ही समय हुआ होगा कि दीदी ने आकर हमे पकड़ लिया.
हम दोनो सकते मे आगये ज़ुबान से कुछ नहीं निकल रहा था.
दीदी ने हमारी हालत देख कर हन्स दिया और बोली. “अरे पगली मैने तुझे कभी किसी काम के लिए मना थोड़े ही किया है.
फिर मुझ से क्यों छिपती फिर रही है?” उन्हों ने कहा. ” करना है तो मेरे सामने बेडरूम मे करो.
अरे तुझे तो मैने बुलाया ही अमर की हर तरह से सेवा करने के लिए था. ये भी तो एक तरह से सेवा ही है.”
फिर तो हम दोनो, ने जब तक तुम मुझे लेने नहीं आगाए, खूब जमकर ऐश किए.
दीदी ने बाद मे मुझे तुम्हारे बारे मे भी बताया कि तुम किस तरह उन्हें परेशान करते हो.
अब जब तुम किसी की बीवी को चोदोगे तो कोई तुम्हारी बीवी को भी चोद सकता है.
पूरी घटना सुनकर मेरे पातिदेव का लिंग फिर से तन कर खड़ा हो गया था फिर तो हम वापस गुत्थम गुत्था हो गये.
इस तरह हमारे बीच एक नये रिश्ते की शुरुआत हो गयी. आप लोगो को मेरी कहानी कैसी लगी प्लीज जरुर बताईयेगा |