मेरी उम्र २८ वर्ष है, मेरा रंग सांवला जरुर है लेकिन लोगों का कहना है की मेरे नयन नक्श बहुत आकर्षक हैं, मैं इकहरे बदन की दुबली पतली और लंबी युवती हूँ, मेरी पतली कमर ने मुझे सिर से पांव तक सुन्दर बना रखा है, मेरे पति ने सुहागरात को बताया था कि जब वे शादी से पहले मुझे देखने गये थे मेरी सूरत देखे बिना मेरी कद काठी पर ही मोहित हो गये थे और जब सुरत देखी तो हाल बेहाल हो गया था, मेरी शादी १९ वर्ष कि उम्र में हुई थी, मैं ६ वर्षीय एक बेटे की मां भी हूँ, उसके बाद मैं गर्भवती नहीं हुई, कीसमे क्या खामी आ गई है यह जानने की हमने कभी कोशिश नहीं की और ना ही कभी विचार विमर्श किया,
मै कभी अपने पति से और बच्चे के लिए कहती हूँ तो यह कह कर टाल जाते हैं कि एक लाडला है तो, वही बहुत है, और बच्चे नहीं होते तो ना हों, क्या करना है,?
लेकिन बच्चों के मामले में मैं तृप्त या संतुस्ट नहीं हूँ, कम से कम दो तीन बच्चे तो होने ही चाहिये, इसलिये मैं पति के विचारों से सहमत नहीं हूँ, मेरे मन में एक या दो बच्चों की माँ बनने की लालसा बनी रहती है,
मेरी एक पड़ोसन ने मुझे सलाह दी ” तुम अपने पति के साथ अस्पताल जाकर चेक करवाओ, इलाज असंभव नहीं है, पहले एक बच्चा पैदा कर चुकी हो तो स्पष्ट है कोई छोटी मोटी खराबी आ गई है, इलाज हो जायेगा तो फिर गर्भवती हो सकोगी,”
मैनें पति को बताया तो डांट पिला दी, ” डाक्टरों के पास चक्कर लगाना मुझे पसंद नहीं है और ना ही मुझे और बच्चों की जरूरत है, तुम्हे क्यों इतनी जरुरत महसूस हो रही है की पड़ोस में रोना रोती फिर रही हो,? भगवान ने एक लड़का दिया है उसी का अच्छी तरह पालन पोषण करो और खुश रहो,” यह एक साल पहले की बात है, मेरे पति एक अस्पताल में ही नौकरी करते हैं, कभी दिन की तो कभी रात की डयूटी लगती है, मेरे कोई देवर जेठ नहीं है, दो ननदें और ससुर जी हैं, एक ननद की शादी मुझसे भी पहले हो चुकी थी, दूसरी की शादी पिछले साल ही हुई है, अपने लड़के को हमने स्कूल में डाल दिया है,
शुरू में ही पता लगने लगा की वह पढ़ने में तेज निकलेगा, उसे मैं बहुत प्यार करती हूँ, उसके खान पान और पहनावे का भी ध्यान रखती हूँ, फिर भी जी नहीं भरता, हर समय सोचती रहती हूँ की एक बच्चा और हो जाता तो अच्छा होता, बेशक चाहे बेटी ही हो जाये, और बच्चा पाने की लालसा लुप्त नहीं हो पा रही थी, इस लालसा के चलते मेरा मन बहकने लगा, मेरी नीयत खराब होने लगी की मैं अपने पति के किसी मित्र से शारीरिक संबन्ध बना कर एकाध बच्चा और पैदा कर लूँ , मन बहकने के दौरान मेरी मती भ्रष्ट हो जाती, मैं एक बार भी नहीं सोच पाई की पति के वीर्य में खराबी है
या मेरी बच्चेदानी खराब हो गई है,? नहीं सोचा की अगर मुझमें खराबी आ गई होगी तो गैर मर्द से संबन्ध बनाने से भी गर्भवती कैसे हो जाउंगी,? बस लगातार यही सोचती रही की गैर मर्द से सहवास करुँगी तो मेरी लालसा पुरी हो जायेगी, मेरे पति के कई मित्र हैं, दो तो इतने गहरे मित्र हैं की अक्सर मिलने घर तक चले आते हैं, जब पतिदेव ने एकदम निराश कर दिया तो मेरा ध्यान उनके दोनों मित्रों की ओर स्वभाविक रूप से चला गया, वे दोनों भी शादी शुदा और दो दो बच्चों के पिता हैं, उनसे मैं कभी पर्दा नहीं करती थी, पति के सामने भी हंसती बोलती थी, उनकी नजरों में मेरे यौवन की लालसा सदैव झलकती थी, लेकिन मैं नजरन्दाज कर जाती थी, क्योंकि मुझे उनकी जरूरत मासुस नहीं होती थी, मेरे पति भी हिर्ष्ट पुष्ट और मेरी पसन्द के पुरुष थे,
लेकिन चूँकि उन्होंने मुझे निराश किया इसलिए वे मेरी नजरों में बुरे बन गये थे, और इसलिए मैं उनके मित्रों की ओर आकर्षित हो गई, पहले जब उनके मित्र आते और पति ना होते तो लौट जाते थे लेकिन अब पति नहीं होते तो उनके मित्रों से बैठने, चाय पिने का अनुरोध करती हूँ, कभी एक आता कभी दूसरा आता, मेरे अनुरोध को ये अपना सौभाग्य समझाते इसलिये बैठ जाते, चाय के बहाने उन्हें कुछ देर के लिये रोकती और मुस्कुरा मुस्कुरा कर बातें करती, कभी उनकी बिबियों के बारे में पूछती कभी उनकी प्रेमिकाओं की बातें करके छेड़ती, वे मेरी बातें रस ले ले कर सुनते और खुद भी मजाक करते, वे दोनों ही मेरे रुप सौन्दर्य के आगे नतमस्तक थे, मैं भी उनके पौरुष के आगे झुकने का मन बना चुकी थी, लेकिन मेरी लज्जा हमारे बिच आड़े आ रही थी,
इसलिये हम एक दुसरे की ओर धीरे धीरे झुक रहे थे, हालांकि मैं दोनों से शारीरिक संबन्ध बनाने की जरूरत महसूस नहीं कर रही थी, क्योंकि मैं बदनाम होना नहीं चाहती थी, चारा मैं दोनों के आगे फेंक रही थी, जो भी पहले चुग जाये ये भाग्य के ऊपर मैंने छोड़ दिया था, दोनों एक साथ कभी नहीं आये, एकाध बार ऐसा मौका आया लेकिन ना मैंने बैठने के लिये कहा और ना ही वे बैठते थे, दोनों अपनी अपनी गोटी सेट करने मैं लगे थे, इसलिये एक साथ बैठ कर दोनों ही मुझसे हंसी ठिठोली कैसे करते,?
पापा जी यानि मेरे ससुर जी एक दुर्घटना में चार साल पहले अपने दायें पांव का पंजा खो चुके हैं, इसलिये काम धंधा उनके बस का रहा नहीं, जरूरत भी क्या है,? अपना मकान है, इकलौता बेटा कमा ही रहा है, इसलिये वे घर में ही बेकार पड़े रहते हैं, उनकी उम्र लगभग सैंतालिस साल है, दिन भर घर में पड़े पड़े ऊब जाते हैं इसलिये शाम को चार बजे बाजार घुमने चले जाते हैं, चलने में दिक्कत होती है इसलिये धीरे धीरे चलते हैं, वापिस लौटने में उन्हें दो तीन घंटे लग जाते हैं, पति के मित्रों से हंसी मजाक करने का मुझे यही समय मिलता था, वे हर रोज आकर बैठते भी नहीं थे,
एक शाम मैं इनके एक मित्र के साथ बैठी चाय पी रही थी, चाय पीने के दौरान एक दुसरे को झुकने की चेष्टाएँ जारी थी, आधा घंटा बीत चुका था, उस दिन जाने के लीये उठते समय उसने पहली बार अपनी चाहत प्रकट की, ” जाने का मन ही नहीं होता, जी चाहता है आपके साथ बैठा रहूँ,”मैनें मुस्कुरा दिया,
ठीक उसी समय पापा जी आ गये, उस रोज एक ही घंटे में वापस लौट आये थे, उन्हें देख कर मित्र तो चला गया, चाय की दो प्यालियों को देख कर पापा जी ने कुछ तो अर्थ लगाया ही होगा, विदाई के समय मेरी मुस्कान कुछ अलग ही तरह की थी, इसे देख कर तो पापा जी का आशंकित हो जाना स्वाभाविक ही था, फिलहाल उस वक्त पापा जी ने कुछ नहीं कहा-पूछा, मेरा ६ वर्षीय बेटा पापा जी से बहुत घुला मिला हुआ है, ज्यादा समय वह पापा जी के पास ही पढता और खेलता है, वह खाना खा चुका होता है
तो भी पापा जी के साथ एक दो कौर जरूर खाता है, उसे नींद भी पापा जी के पास ही आती है, मेरे पति नाईट ड्यूटी में होते हैं तो मुन्ने को सो जाने के बाद अपने बिस्तर पर उठा लाती हूँ, नाईट ड्यूटी नहीं होती तो पापा जी के पास ही सोने देती हूँ, उस दिन तो नहीं अगले दिन जब मेरे पति की नाईट ड्यूटी लग गई तब पापा जी बोले थे, खाना पीना हो चुका था, मुन्ना तो सो चुका था, पापा जी भी सोने की तैयारी कर रहे थे, मैं मुन्ने को उठाने पहुंची तो पापा जी पूछने लगे, ” कल वो कैसे बैठा था? क्या कह रहा था?”
” मैं चाय का घुंट भरने ही जा रही थी की वो आ गया, उसे यह बता कर की ये अभी ड्यूटी से नहीं आये हैं, यों ही कह दिया चाय पिलो, वो रूक गया, मैं एक और प्याली ले आई, अपनी चाय देनी पड़ गई….” मैं छण भर के लिए रूक कर तुरन्त ही बोल पड़ी, ” वह किसी विशेषग्य के बारे में बता रहा था, कह रहा था उसे दिखा लो, कोई खराबी आ गई होगी, इलाज से खराबी दुर हो जायेगी,” तब तक आप आ गये और वो चला गया,”
” मेरे आते ही वह चला गया, इसीलिए सोचने को मजबूर हो गया हूँ,” पापा जी कहने लगे, ” बहु तुम यहाँ बैठो, मैं तुम्हे समझाता हूँ, आ जाओ,”
मैं बैठने से हिचकी, वे मेरे पति के पिता थे, मैं उनके बराबर बैठने की हिम्मत नहीं कर पाई…
कहानी जारी है….